अबतक जिसके दर्शन ना हो पाए कहीं किसी को भी.
खुद भी कभी न देखा पर वो औरों को दिखलाते हैं.
बड़े बड़े उपदेश हैं उनके सब तर्कों पर भारी हैं.
तर्क की जब भी बात चले वो चीख चीख चिल्लाते हैं.
शिष्यों की भरमार है जो कुछ भी करने को तत्पर है.
जब भी पोल खुले उनकी वो मौन देश को जाते हैं.
इक अड्डा जब चूर हुआ तो चेले ढूंढें और कहीं.
धंधा उनका चला करे नित नई युक्तियाँ लाते हैं.
अंधविश्वास कह देते हैं वो देशी छोटे नुस्खों को.
रूप उसीका है ये भी पर उसको अलग बताते हैं.
दूजा बाबा वही कहे तो गलत निगाहों में उनकी.
अपना जो सिद्धान्त है उनका वही सही ठहराते हैं.
मैंने पूछा आत्मा के है इर्द गिर्द हड्डी कितनी.
बोले मेरा विषय नही है चेहरा उधर घुमाते हैं.
सभा समापन पर बोले एसे सवाल क्यों करते हो.
चुप रहना कुछ ले ले लेना तुम भी मुझको ललचाते हैं.
भक्त हैं आश्रम में कम औ सुंदरियां दिखती ज्यादा हैं.
ऐसी भी खबरें हैं उनका नेक न जरा इरादा है.
जो भी उनको मिले चढ़ावा लेखा जोखा मिले नही.
कहते हैं हम तन मन से ही पुण्यों पर आमादा हैं.