Gazal and Sher

शरीफों ने लूटा है मुझे कुछ इस तरह।
हर लुटेरा अब मुझे देखकर रहम खाता है।

वो जालिम मुझे देखते ही जुल्म भूल गया।
अपना बरसों का इकट्ठा किया इल्म भूल गया।

जो अबतक मुझे देखकर रहता था दीवाना सा
वो कल से मेरे चेहरे की फिल्म भूल गया

मेरा फसाना कभी हकीकत से दूर नहीं जाता।
मगर मेरी हकीकत भी किसी फसाने से कम नही होती।

हम दोनों ने सीखा है एक दूसरे से बहुत कुछ।
बस ये न पूछिए किसने किसको क्या दिया

हम दोनों ने सीखा है एक दूसरे से बहुत कुछ।
बस ये न पूछिए किसने किसको क्या दिया

तारीख में इंसान परिंदे से बड़ा कुछ भी नहीं।
तू कोई नया इतिहास रचेगा क्या।

क्यों नचाना चाहता है दुनिया को अपने इशारे पर।
हर कोई तुम्हारे इशारे पर नचेगा क्या।

हक तुम्हारा जितना है बस उतना ही खा।
किसी और का खायेगा तो पचेगा क्या

जिसे प्यास ही नहीं उसे पिलाता क्यों है।

जिसे प्यास ही नहीं उसे पिलाता क्यों है।
जो नहीं आनेवाला उसे बुलाता क्यों है।

गन्दगी बैठ चुकी है नीचे कबकी।
बेवजह पानी को हिलाता क्यों है।

हर बात असल में सीधी बात होती है।
उसे सीधे ही कह डाल हकलाता क्यों है।

रिश्तों में मिठास कायम रहे तो अच्छा है।
हर बात पर बेवजह चिल्लाता क्यों है।

बात में वजन आएगी ख़ुद ब ख़ुद.
सदा सच ही बोला कर ढुलमुलाता क्यों है।

क्यों समझ बैठा है कि इजहार इनकार ही बनेगा।
थोड़ा ऐतमाद ला, कह डाल, शर्माता क्यों है।

मिसाल जिसके ढूंढेगा, हजारों मिलेंगे।
तो हकीकत ही ढूंढ, खुद को बहकाता क्यों है।

बसेरा रहेगा तो आएंगे नए बाशिन्दे भी।
गरीब की झोपड़ी को जलाता क्यों है।

जन्नत ओ दोजख गर हैं तो जमीं पर ही हैं।
मुझे तसव्वुर की दुनिया में फिराता क्यों है।

तुम्हें हकीकत नहीं मालूम, तो पता कर।
अपने झूठ से औरों को डराता क्यों है।

ये जिंदगी किसी नेमत से कमतर तो नहीं।
फिर हर मजे को आखिर किरकिराता क्यों है।

ईमान ही गर न रहा तो बचेगा क्या।

ईमान ही गर न रहा तो बचेगा क्या।
भौकाल गर खत्म हो गया तो कल मचेगा क्या।

तारीख में इंसान परिंदे से बड़ा कुछ भी नहीं।
तू कोई नया इतिहास रचेगा क्या।

क्यों नचाना चाहता है दुनिया को अपने इशारे पर।
हर कोई तुम्हारे इशारे पर नचेगा क्या।

हक तुम्हारा जितना है बस उतना ही खा।
किसी और का खायेगा तो पचेगा क्या