बापू बड़ा बदमाश है

बापू से बोलूं चुड़ी चाहिेए वो बोले चूड़ा खा लो
जब बोलूं गरम समोसा दो तो वो बोले गाना गा लो।


जब बोलू बापू चाय पिला दो बाले चाट लो चटनी को
मैं कुछ बोलूं वो कुछ बोले ना सुनता मेरी रटनी को।

मैं जब भी पूछूं उससे मेरा बड्डे कब तक आएगा
मिलता उत्तर “क्या देगा बड्डे बस पैसा ले जाएगा।”

मेरी सच्ची बातों पर उसको यकीं कभी ना आता है
सच सुनने का ना आदी है बस बिना वजह झल्लाता है।

मैडम मुझे पढ़ाती हैं पर वो मुझको समझाता है
“इसको बेटा ऐसे बोलो ऐसे ही बोला जाता है।”

मैं जब टीवी चालू करती वो धीरे से आ जाता है
कार्टून है वो कार्टून हटा कर हिन्दी फिल्म लगाता है।

घर में चुपचाप रहे बैठा रेस्त्रां में भी ना जाता है
रूखी-सूखी रोटी में ही आनन्द असीम वो पाता है।

मैं क्या उसका गुणगान करूं वो खुद को चतुर समझता है।
छोटी से छोटी बातों पर बादल की तरह गरजता है।

मैं बड़ी हो गइ छः साल की वो कहता तू छोटी है।
मैं सुन्दर और सलोनी सी पर कहता मुझको मोटी है।

मैं क्या बोलू कैसे समझाऊ बडा है वो ना बच्चा है।
सब उल्टा सीधा करता है पर लगता दिल का सच्चा है।

सदियों से लगे शरारत से रिश्ता उसका कुछ खास है।
बस इतना लगता मुझको बापू बड़ा बदमाश है।

बिजली रानी

बिजली रानी बिजली रानी कहाँ गई है बिजली रानी।
प्यास लगी थी शायद उसको चली गई है पीने पानी।


जब भी मैं पढ़ने बैठूं तो याद उसे आती है नानी
जब मैं सोऊं सोने में वो करने लगती आनाकानी।

आँख दबाए ऐसे जैसे लगती है बिल्कुल वो कानी।
फर्ज निभाए सड़क पर अपना करती है अच्छी दरवानी।

दुआ करो कि खत्म हो जाए उसकी सारी आज जवानी
जब देखो करती रहती है वो अपने मन की मनमानी।

कभी पड़ेगी फिर ना सुननी एसी दर्दनाक कहानी
सुनके जो लगती है हरदम बेजा बेमतलब बेमानी।